रक्त की बूँद-बूँद से लिखी जा रही मानवता की अमर गाथा
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By Admin
Published - 14 June 2025 420 views
जसपाल और जगनैन सिंह जैसे सेवाव्रती युगल से मिलिए
— डॉ. सौरभ पाण्डेय
किसी राष्ट्र की आत्मा उसकी सेना, संसद या संपत्ति में नहीं, बल्कि वहाँ के सेवाभावी नागरिकों की संवेदना में बसती है। वे नागरिक, जो बिना किसी शोर या अपेक्षा के अपने रक्त की बूँद-बूँद से जीवन की लौ को जलाए रखते हैं — और वह भी अजनबियों के लिए।
आज जब हम अंतरराष्ट्रीय रक्तदान दिवस की चर्चा कर रहे हैं, तब गोरखपुर की धरती से एक प्रेरणास्रोत गाथा हमारी आत्मा को झकझोर रही है — जसपाल सिंह और जगनैन सिंह ‘नीटू’ की।
दोनों ही महापुरुषों ने अब तक क्रमशः 80 और 80 बार रक्तदान कर न केवल सेवा की परिभाषा को नया विस्तार दिया है, बल्कि देहदान का संकल्प लेकर यह भी स्पष्ट कर दिया है कि उनका जीवन और मृत्यु — दोनों ही मानवता को समर्पित हैं।
इनका यह समर्पण कोई संयोग नहीं, बल्कि संस्कार है — सेवा का, समर्पण का और सत्य का।
इसी भावभूमि पर इन्होंने स्थापित किया —
‘गुरु नानक देव नि:शुल्क रक्तदान सेवा केंद्र’,
जो गुरु श्री गोरक्षनाथ चिकित्सालय ब्लड बैंक के सहयोग से 21 वर्षों से कार्य कर रहा है और अब तक 6,000 से अधिक जरूरतमंदों को रक्त प्रदान कर चुका है।
इस केंद्र के अंतर्गत आयोजित 140 से भी अधिक रक्तदान शिविर भारत की उस चुपचाप चल रही मानवतावादी क्रांति का प्रमाण हैं, जिसमें जाति, धर्म, वर्ग, क्षेत्र जैसे सारे कृत्रिम भेदभाव पीछे छूट जाते हैं — और केवल एक संवेदनशील इंसान सामने खड़ा मिलता है, रक्त की एक थैली लिए हुए।
जगनैन सिंह ‘नीटू’ के शब्दों में —
> "हमारा धर्म ही सेवा है। मानवता ही सबसे बड़ा संप्रदाय है।"
और जसपाल सिंह के अनुभवों में —
> "रक्तदान ईश्वर की पूजा है। वह क्षण जब किसी की आँखों में लौटती आशा देखी जाती है, वह परमात्मा दर्शन से कम नहीं होता।"
इन वाक्यों में हमें उस भारत की झलक मिलती है, जिसकी कल्पना महात्मा गांधी ने की थी — जहाँ सेवा ही स्वराज है और करुणा ही धर्म।
हमारे समाज में ऐसे लोग भी हैं, जो रक्तदान को लेकर आज भी भ्रम और भय से ग्रस्त हैं। लेकिन जसपाल और नीटू जैसे सेवाव्रती न केवल इस भ्रम को तोड़ते हैं, बल्कि अपने कर्मों से पूरे समाज का रक्तचाप बढ़ा देते हैं — वह रक्तचाप जो संवेदना से संचालित होता है।
इनकी सेवा केवल रक्तदान तक सीमित नहीं है — गुरुद्वारा जटाशंकर के माध्यम से दवा वितरण, भोजन सेवा, आकस्मिक सहायता जैसे दर्जनों मानवीय प्रयास निरंतर जारी हैं।
इस सेवा-पथ में माननीय योगी आदित्यनाथ जी महाराज का मार्गदर्शन व आशीर्वाद भी इनकी प्रेरणा का स्तंभ रहा है।
जगनैन सिंह आज ‘धरा धाम इंटरनेशनल’ जैसे वैश्विक मंच के निदेशक हैं — और मानवता की इस लौ को विश्वस्तरीय आंदोलन बनाने की दिशा में जुटे हैं।
इस संपादकीय के माध्यम से हम सिर्फ इन दो व्यक्तित्वों को नमन नहीं कर रहे —
बल्कि सेवा के उस विचार को सलाम कर रहे हैं जो राजनीति से परे है, जो धर्म से ऊपर है, और जो केवल इंसानियत की भूमि पर खड़ा है।
आज भारत को ज़रूरत है —
अधिक अस्पतालों से पहले अधिक सेवाव्रतियों की।
अधिक योजनाओं से पहले अधिक जीवन समर्पित करने वालों की।
अधिक विज्ञापन से पहले अधिक प्रेरणा की।
जसपाल और नीटू उसी प्रेरणा के स्रोत हैं —
जिन्हें देखने के लिए हमें किसी स्मारक की नहीं, केवल आँखों की विनम्रता और हृदय की संवेदना की ज़रूरत है।
> रक्तदान केवल चिकित्सा नहीं, यह आत्मदान है।
और देहदान — सेवा की अंतिम परिणति।
पिता जसपाल सिंह के पदचिन्हों पर चलते हुए उनके पुत्र डॉ. दलजीत सिंह भी अपने चिकित्सकीय सेवा-भाव से लोगों को सेवा प्रदान कर रहे हैं।
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