26 मई को बैंकॉक में गूंजा भारत का आध्यात्मिक स्वर: संत डॉ. सौरभ पाण्डेय पर नौ पुस्तकों का ऐतिहासिक विमोचन संपन्न
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By Admin
Published - 26 May 2025 24 views
स्वतंत्र पत्रकार विजन
संवाददाता
बैंकॉक/गोरखपुर।
भारत की सनातन चेतना, सौहार्द और मानवता की प्रतिनिधि संत परंपरा को वैश्विक मंच पर स्थापित करने वाला एक ऐतिहासिक क्षण 26 मई को थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में रचा गया। संत डॉ. सौरभ पाण्डेय के जीवन, विचार और सेवायात्रा पर केंद्रित नौ पुस्तकों का एक साथ भव्य विमोचन समारोह सम्पन्न हुआ, जिसने भारतीय आध्यात्मिकता को नई ऊँचाइयों तक पहुंचाया।
यह अनूठा कार्यक्रम यूनिक रिकॉर्ड्स ऑफ यूनिवर्स और एशिया बुक ऑफ द वर्ल्ड रिकॉर्ड्स जैसे वैश्विक मंचों पर दर्ज होकर इतिहास का हिस्सा बन गया है। विमोचित पुस्तकों में निहित हैं संत सौरभ पाण्डेय के वे तपस्वी विचार, जो आज के वैश्विक समाज को शांति, सहिष्णुता और सौहार्द का मार्ग दिखाते हैं।
अंतरराष्ट्रीय मंच की विभूतियों की गरिमामयी उपस्थिति
इस ऐतिहासिक अवसर पर थाईलैंड के महामहिम राजा जनरल ग्रैंड मास्टर डॉ. सुमपंद रथफट्टाया, इंडोनेशिया के महाराजा वाईएमओकेएम 11 रिच, थाई सरकार के वरिष्ठ अधिकारी पुलिस लेफ्टिनेंट कर्नल डॉ. मोनरुडी सोमार्ट, अमेरिका के डॉ. परमिंदर सिंह, डा प्रेम प्रकाश,पवन मिश्रा सहित अनेक देशों के विशिष्ट अतिथि उपस्थित रहे। सभी ने डॉ. सौरभ पाण्डेय की वैश्विक दृष्टि, करुणा और आध्यात्मिक प्रतिबद्धता की सराहना की।
लेखकों की कलम से सजीव हुआ एक युग
इस ऐतिहासिक विमोचन में प्रिंस डॉ. इवान गैसीना, डॉ. सत्यवीर सिंह 'निराला', डॉ. निशा अग्रवाल, डॉ. राजीव भारद्वाज और डॉ. अभिषेक कुमार जैसे प्रतिष्ठित लेखकों की रचनाएँ शामिल रहीं, जिन्होंने संत सौरभ जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को कालजयी शब्दों में पिरोया।
आयोजन के सूत्रधार और प्रेरणा स्रोत
इस समारोह के पीछे धरा धाम इंटरनेशनल, देवनागरी उत्थान फाउंडेशन, यूनाइटेड गिल्ड लंदन, और एशिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स श्रीलंका जैसी संस्थाओं का सशक्त योगदान रहा, जो विश्व पटल पर भारतीय संस्कृति, धर्म और सर्वधर्म समभाव को प्रतिष्ठित करने हेतु सतत कार्यरत हैं।
उद्गार और अनुभूतियाँ
कार्यक्रम में डॉ. सुनील दुबे, मिसेज एशिया यूनिवर्स पूजा निगम, और डॉ. अभिषेक कुमार सहित अनेक गणमान्यजनों ने इस विमोचन को केवल एक साहित्यिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का वैश्विक उद्घोष बताया। यह आयोजन “वसुधैव कुटुम्बकम्” और “सर्वधर्म समभाव” के आदर्शों को मूर्त रूप देने वाला एक ऐतिहासिक साक्ष्य बन गया।
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